इतना जलते क्यों हो? खुद की काबिलियत पर शक़ है तुम्हें या हमारे आगे निकल जाने का इर।
क्यों पुछते हैं,आसमां के चंदा और तारे
झुकता हूँ क्यों आ कर, मैं आगे तुम्हारे
मेरे सजदे से आखिर,है इनका क्या लेना
क्यों चुभते हैं इनको, ये खुशियाँ हमारी
तुम गैरों के साथ रहकर हमें जलाते रहना, हमजलते रहेंगे,
वो एक तरफा इश्क़ में परे है ना साहब,तो…….
मरते रहेंगे ॥
ईष्ष्या की आग में बहुत ताकत होती है जनाब
कईयो के घर की युं ही तबाह कर देती है
जैसे कुत्तों की पूंछ कभी सीधी नही हो सकती।
वैसे ही,
घटिया इंसान की घटिया सोच कभी सही नही हो
सकती।
आँसुओं को भी पानी समझ लिया करते हैं,
मैयत पे भी मुस्कुरा दिया करते हैं कुछ लोग।
मैं जानता हूँ उनकी इस हरकत को,मौत की
सच्चाई को भी भुला दिया करते हैं कुछ लोग।
बोल नहीं पाता,
मगर महसूस मुझे भी होता है,
Teरा किसी और से बात करना,
मुझे बहुत ज़ोर से चुभता है..
कुछ लोगों को जलने के लिए
माचिस की आवश्यकता नहीं होती
वह तो बस
जल जाते हैं किसी की एक हंसी से।
जब इंसान की किस्मृत बदलती है।
तो गैरों से ज्यादा अपने जलते है..
सूना था आज देख भी लिया
सफल होने से सबसे ज्यादा
तकलीफ अपने करीबी लोगों
को ही होता हैं।
Jeclousy भी उसे नमक की तरह होती है।
जो खाने में स्वाद ले आती है
Jeolousy भी उस छुपी चेगारी की तरह होती है।
जो भटके मोहब्बत को लाइन पर(भड़का) ले आती हैं।
जो पल-पल राग द्वेष की आग में
जलता है,
वह सच्ची खुशी और आनन्द नही पा
सकता है।
कवि सुमित मानधना ‘गौरव’
जब लिखता है तब रुलाता है।
जब बोलता है तब हंसाता हैं
जलने वाले सोचते हैं ये साला
जब देखो तब मुस्कुराता है।
हमारी अफवाह के धुँए
वही से उठते हैं,
जहाँ हमारे नाम से
आग लग जाती है।
दूसरे को आगे बढ़ते हुए देख लोगे
तो मर जाओगे कहीं,
इतनी ईष्ष्या रख दूसरों से,
अपनी चिता जालाओगे यही।
नफ़रत थी
इसीलिए जलन नहीं हुई
मोहोब्बत होती तो
कब का हम जल के राख
हो जाते।
जलते रहो तुम
हम पर आंच तक ना आएगी
तुम खाक हो जाओगे
हम पर राख तक ना आये
तुम हसीन हो,
पर चाँद नहीं,,
कोई तुम्हे रात भर देखे,
मुझे पसंद नहीं,,
तुम महक हो जिंदगी कि
पैर फूल नही.
जब से हम कामयाब हो गए,
तब से हम उनके
नजरो मे खराब हो गए.!
रहते हैं आसपास ही लेकिन,
साथ नहीं होते…
कुछ लोग जलते तो बहुत हैं मुझसे
बस खाक नहीं होते!!